Corona virus effect on the world

कोरोना वायरस से संबंधित खबरों से अखबार पटे पड़े हों और न्यूज़ चैनल्स दिन रात चीख चीख कर कोरोना वायरस के खौफ की दास्तान सुना रहे हों । कोरोना वायरस के वजह से औधोगिक इकाइयां बन्द हो रही हो शेयर मार्केट नीचे जा रहा हो। ऐसे समय में इजरायल के प्रधानमंत्री के द्वारा की गई अपील सुकून देने वाली है। उन्होंने अपने देश वासियों से भारतीयों की तरह नमस्ते अपनाने की अपील की जिससे

कोरोना वायरस फैलने का डर कम हो सके।
कोरोना से डरने का नई से बाबा नमस्ते करने का

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अब तो कोरोना वायरस पर चुटकुले भी बनने लगे हैं

कोरोनावायरस और प्रोटागोरस विरोधाभास
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2000 साल पहले, ग्रीस में, प्रोटागोरस नाम का एक वकील था। एक युवा छात्र, यूथलॉस ने उसके तहत प्रशिक्षु का अनुरोध किया, लेकिन वह शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ था। छात्र ने एक सौदा करते हुए कहा, "मैं अदालत में अपना पहला मामला जीतने के दिन आपकी फीस का भुगतान करूंगा"। शिक्षक ने सहमति दी। जब प्रशिक्षण पूरा हो गया और कुछ साल छात्र को भुगतान किए बिना बीत गए, तो शिक्षक ने छात्र के विरुद्ध अदालत में मुकदमा दायर करने का फैसला किया।
शिक्षक ने सोचा, यदि मैं कानून के अनुसार केस जीतता हूं, तो छात्र को मुझे भुगतान करना होगा, क्योंकि मामला बकाया भुगतान न करने का है। और अगर केस हार जाता हूं, तो छात्र को मुझे भुगतान करना होगा, क्योंकि उसने अपना पहला केस जीत लिया होगा। किसी भी तरह मुझे भुगतान किया जाएगा। छात्र का विचार था, अगर मैं केस जीतता हूं, तो मुझे शिक्षक को भुगतान नहीं करना होगा, क्योंकि मामला मेरे भुगतान न करने के बारे में है और अगर मैं केस हार जाता हूं, तो मुझे उसका भुगतान नहीं करना होगा क्योंकि मैंने अपना पहला केस अभी तक नहीं जीता है। किसी भी तरह से मैं शिक्षक को भुगतान नहीं करूंगा। इसे प्रोटागोरस विरोधाभास के रूप में जाना जाता है।
इसे किसी भी तरह से आप देखें तो आप पाएंगे कि दोनों के पास ठोस और सामान तर्क हैं, आप मे से कोई भी शिक्षक या छात्र के समर्थन में जा सकता है और यह गलत भी नहीं होगा।
मैं और मेरे बहुत से मित्र चिकित्सा विज्ञान रिसर्च और चिकित्सा पद्धति दोनों तरह के कार्यों में हैं ।
मेरा कार्यक्षेत्र चिकित्सा, कृषि, पेट्रोलियम क्षेत्र में नए और एडवांस प्रोडक्ट्स डेवलपमेंट का है। एक एडवांस और नव मेडिकल प्रोडक्ट को डेवलप करते समय हम कई बार ऐसी स्थिति के सामने आ जाते हैं जहां हमको निर्णय लेना पड़ता है कि-- कौन सा रास्ता ले. सामान्य परिस्थितियों में एक रास्ता पकड़ कर उसमें कुछ दूर चल कर वापस आकर दूसरा रास्ता भी पकड़ सकते हैं। यहां पर हद से हद समय और धन का नुकसान हो सकता है ।
परंतु असामान्य परिस्थितियों जैसे कोरोना वायरस महामारी में कोई डायग्नोस्टिक किट का डेवलपमेंट करना हो या वैक्सीन बनानी हो या किसी दवा की खोज यहां पर हर एक दिन हर एक पल बहुत महत्वपूर्ण होता है वहां पर ऐसे निर्णयों को ले पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
यह तो रही उन लोगों की बात जो मेडिकल प्रोडक्ट डेवलप और रिसर्च कर रहे हैं। लेकिन चिकित्सा पद्धति से जुड़े वह लोग जो कि फ्रंट लाइन पर सीधे मरीजों के साथ काम कर रहे हैं भी कई बार ऐसी स्थितियों में आते हैं, चाहे diagnostic या therapeutic निर्णय लेना हो।
एक चिकित्सक--- वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर उपचार की सिफारिश कर सकता है और दूसरा मेडिकल साक्ष्य के आधार पर विपरीत उपचार की सिफारिश कर सकता है। सही या गलत, लेकिन दोनों तरफ कुछ योग्यता हमेशा मौजूद रहती है।
अक्सर चिकित्सक के अंदर खुद एक आंतरिक संघर्ष चल रहा होता है सबसे उपयुक्त उपचार के बारे में निर्णय लेने के लिए। इस संघर्ष को आम इंसान नहीं समझ सकता। प्रोटागोरस और यूथालोस उनके दिमाग में "यह करने के लिए" या "ऐसा करने के" लिए बहस कर रहे हैं होते हैं। दुविधा के सींग चिकित्सक को चीर रहे होते हैं।
मानव जीवन जितना चिकित्सा पर निर्भर है उतना ही अर्थव्यवस्था पर भी। इस समय दुनिया प्रोटागोरस विरोधाभास से गुजर रही है। COVID curve को समतल करने के हमारे वैश्विक प्रयास में, कहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था curve तो समतल नहीं हो जाएगा?
सवाल यह है कि इन सबके बीच आगे बढ़ने का सबसे सही रास्ता या तरीका क्या है ?
एक समूह वायरस की transmission chain को तोड़ने के लिए total लॉकडाउन ’की सिफारिश कर रहा है। दूसरा समूह इसे युवा और स्वस्थ लोगों में फैलने की सिफारिश कर रहा है, इस समूह के अनुसार जब हम ' herd immunity' हासिल कर लेंगे तो कोरोनावायरस नियंत्रित हो जाएगा। चिकित्सा समुदाय इन दो समूहों में विभाजित है total lockdown vs graded isolation को लागू करने के लिए?
इन सबके बीच एक महामारी विज्ञानियों का समूह भी है जो कुछ भी नहीं करने का सुझाव रखता है। इनके अनुसार प्रकृति कुछ महीनों में खुद-ब-खुद नियंत्रित कर लेगी और सब ठीक हो जाएगा, वे अपने तर्कों को सही ठहराने के लिए ऐतिहासिक डेटा दिखाते हैं।
फिर आते हैं अर्थशास्त्री या वह लोग जिनका बहुत सा पैसा लगा हुआ है । यह प्रलय काल और कयामत की भविष्यवाणियां कर रहे हैं। यहां अर्थव्यवस्था या धन जीवन से ऊपर है। इन आर्थिक ज्योतिषियों के अनुसार, यदि यह मई तक जारी रहता है तो हमारे चिकित्सा संसाधन चरमरा जाएंगे, कृषि को नुकसान होगा, भोजन की कमी होगी, उत्पादन में रुकावट आएगी। उस अनुपात का एक आर्थिक संकट होगा जो दुनिया ने कभी नहीं देखा है। इसलिए, यह देशों की सरकारों के साथ लॉबिंग कर रहे हैं की इस लॉकडाउन बकवास को यही तोड़ दें और हमेशा की तरह काम करने दें। दिनचर्या को सामान्य कर दिया जाए।
इन सभी के बीच हमारे राजनीतिक आका क्या करेंगे?
वह जो हमेशा से करते हैं वही करेंगे, वे चिकित्सा विशेषज्ञों, महामारी विज्ञानियों और अर्थशास्त्रियों को सुनेंगे। फिर वे तय करेंगे कि किस तरह की कार्रवाई उनके राजनैतिक अस्तित्व को सुनिश्चित करेगी। जिस कार्यवाही से उनके वोट सुनिश्चित रहेंगे वे उसी के साथ चलेंगे।
वर्तमान में टोटल लॉक डाउन उनके वोट बैंक के लिए अनुकूल है क्योंकि अगर यह धारणा बन गई कि सरकार ने नागरिकों को बेसहारा छोड़ दिया है और उनकी सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं किए हैं तो वर्षों की मेहनत से खड़ी कि गई राजनैतिक मीनारें ढह जाएंगी।
अभी की राजनीतिक रणनीति यह है कि इस टोटल लॉक डाउन के साथ चला जाए। उन्हें पता है कि लोग खुद ही थक जाएंगे उकता जाएंगे और मांग करेंगे कि जीवन को सामान्य रूप से चलने दें। फिर इधर उधर के तर्क देकर सरकारें लॉक डाउन को हटा देंगी- इस घोषणा के साथ कि हम जीत गए हैं।
सरकारी घोषणा मात्र से क्या हम यह मान लेंगे कि हम और हमारे बच्चे इस वायरस से बचे रहेंगे? हर महीने इस वायरस से होने वाली मृत्यु दर का आंकड़ा हमारे लिए महत्वहीन हो जाएगा ? क्या अर्थशास्त्र जीवन से जीत जाएगा ? या हम सामूहिक रूप से जीवन के महत्व को समझते हुए अर्थशास्त्र को हरा देंगे?
प्रोटागोरस विरोधाभास का आज तक कोई हल नहीं निकला है। ज्ञानी, अज्ञानी, बुद्धिजीवी हर वर्ग के लोग दोनों पक्षों में तर्क देंगे। सरकार के पक्ष में विपक्ष में- विज्ञान के पक्ष में विपक्ष में-अर्थशास्त्र के पक्ष में विपक्ष में।
पर इन सब के बीच जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है हमारा आपका हमारे बच्चों और मां बाप का जीवन।
कोई भी तर्क या पक्ष लेने से पहले आंख मूंद कर कल्पना करें कि आप खुद या आपका अपना कोई करीबी आपका बच्चा, पत्नी, भाई, बहन, मां बाप इस करोना वायरस की चपेट में आकर अगर दम तोड़ देता है तो उस वक्त आप किस समूह के साथ जाना चाहेंगे?
~ व्योम
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